Vat Savitri Vrat

Vat Savitri Vrat

Vat Savitri Vrat, also known as Vat Purnima Vrat, is a significant Hindu festival observed by married women for the well-being and longevity of their husbands. The vrat (fast) and rituals are performed in honor of Savitri, a legendary figure known for her devotion and dedication to her husband, Satyavan.

Here’s an overview of the Vat Savitri Vrat:

Significance

  • Mythological Background: The story of Savitri and Satyavan from the Mahabharata is in root of the festival. According to the legend, Savitri’s devotion and determination brought her husband back to life after he was claimed by Yama, the god of death.
  • Symbolism: The Vat (banyan) tree holds a central place in the rituals because people consider it sacred, symbolizing longevity and the fulfillment of desires.

Observance

  • Date: People celebrate Vat Savitri Vrat on the Amavasya (new moon day) in the Hindu month of Jyeshtha,
    which typically falls in May or June.
  • Rituals:
    • Fasting: Married women observe a fast from sunrise to sunset.
    • Worship: Women worship the Vat tree by wrapping threads around its trunk, applying vermilion, and offering prayers. They also read or listen to the Vat Savitri Vrat Katha (story of Savitri and Satyavan).
    • Offerings:

Women make offerings of fruits, flowers, and other items to the Vat tree and to Savitri. People consider
the tree an embodiment of the goddess, and they believe the rituals performed around it bring blessings and protection.

Steps of Observance

Preparation: Women wake up early, take a bath, and wear new or clean traditional clothes, often in red,
which is considered auspicious.

Fasting: They observe a fast, abstaining from food and sometimes even water until the completion
of the rituals in the evening.

Puja (Worship):

Vat Tree Worship: They gather around a Vat tree, apply a paste of turmeric and vermilion to the tree trunk,
and tie sacred threads around it while circling the tree, usually seven times.

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Storytelling: They recite the story of Savitri and Satyavan. This tale recounts how Savitri’s devotion and intelligence helped her outwit Yama and bring her husband back to life.

Prayers and Offerings: Prayers are offered to the tree and to Savitri, seeking blessings for their husbands’
long life and prosperity.

Breaking the Fast: The fast is typically broken in the evening after the puja, with women consuming the offerings
and other food.

Cultural Variations

The observance of Vat Savitri Vrat may vary slightly in different regions of India. In some areas, the vrat is observed over three days, while in others, it is a single-day event. The essence of the festival remains the same, focusing on the devotion of married women towards their husbands and family.

Importance

  • Devotion and Commitment: The festival is a celebration of marital devotion and the power of a wife’s love and determination.
  • Community and Solidarity: It also fosters a sense of community as women come together to perform the rituals,
    share stories, and support each other in their spiritual and familial roles.

Vat Savitri Vrat is a profound expression of faith, love, and dedication in the Hindu tradition,
honoring the timeless virtues embodied by Savitri.

Vat Savitri Vrat : वट सावित्री व्रत, जिसे वट पूर्णिमा व्रत के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है
जो विवाहित महिलाएं अपने पतियों की भलाई और लंबी उम्र के लिए मनाती हैं। व्रत (उपवास) और अनुष्ठान सावित्री के सम्मान
में किए जाते हैं, जो अपने पति सत्यवान के प्रति भक्ति और समर्पण के लिए जानी जाती हैं।
यहां वट सावित्री व्रत का अवलोकन दिया गया है:

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वट सावित्री व्रत : महत्व

पौराणिक पृष्ठभूमि: यह त्यौहार महाभारत की सावित्री और सत्यवान की कहानी पर आधारित है। पौराणिक कथा के अनुसार, मृत्यु के देवता यम द्वारा दावा किए जाने के बाद सावित्री की भक्ति और दृढ़ संकल्प ने उसके पति को वापस जीवन में ला दिया।
प्रतीकवाद: वट (बरगद) का पेड़ अनुष्ठानों का केंद्र है क्योंकि इसे पवित्र माना जाता है और यह दीर्घायु और इच्छाओं की पूर्ति का प्रतीक है।
पालन तिथि: वट सावित्री व्रत हिंदू महीने ज्येष्ठ में अमावस्या (नया चंद्रमा दिवस) पर मनाया जाता है, जो आम तौर पर मई या जून में पड़ता है।
रिवाज:
उपवास: विवाहित महिलाएं सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास रखती हैं।
पूजा: महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, इसके तने के चारों ओर धागा लपेटती हैं, सिन्दूर लगाती हैं और पूजा करती हैं।
वे वट सावित्री व्रत कथा (सावित्री और सत्यवान की कहानी) भी पढ़ते या सुनते हैं।
प्रस्ताव:
महिलाएं वट वृक्ष और सावित्री को फल, फूल और अन्य वस्तुएं चढ़ाती हैं। पेड़ को देवी का अवतार माना जाता है और माना जाता है
कि इसके आसपास किए गए अनुष्ठान आशीर्वाद और सुरक्षा लाते हैं।

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पालन ​​के चरण
तैयारी: महिलाएं जल्दी उठती हैं, स्नान करती हैं और नए या साफ पारंपरिक कपड़े पहनती हैं, अक्सर लाल रंग के, जो शुभ माना जाता है।
उपवास: वे उपवास रखते हैं, शाम को अनुष्ठान पूरा होने तक भोजन और कभी-कभी पानी से भी परहेज करते हैं।
पूजा (पूजा):
वट वृक्ष की पूजा: वे वट वृक्ष के चारों ओर इकट्ठा होते हैं, पेड़ के तने पर हल्दी और सिन्दूर का लेप लगाते हैं, और पेड़ की परिक्रमा करते हुए,
आमतौर पर सात बार, उसके चारों ओर पवित्र धागे बांधते हैं।
कथावाचन:सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी जाती है। यह कहानी बताती है कि कैसे सावित्री की भक्ति और बुद्धिमत्ता ने
उसे यम को हराने और अपने पति को वापस जीवन में लाने में मदद की।
प्रार्थना और प्रसाद: पेड़ और सावित्री से प्रार्थना की जाती है, अपने पतियों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है।
व्रत तोड़ना: व्रत आम तौर पर शाम को पूजा के बाद तोड़ा जाता है, जिसमें महिलाएं प्रसाद और अन्य भोजन खाती हैं।
सांस्कृतिक विविधताएँ
वट सावित्री व्रत का पालन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में थोड़ा भिन्न हो सकता है। कुछ क्षेत्रों में, यह व्रत तीन दिनों तक मनाया जाता है,
जबकि अन्य में, यह एक दिन का आयोजन होता है। त्योहार का सार वही रहता है, जो विवाहित महिलाओं की अपने पति और
परिवार के प्रति समर्पण पर केंद्रित है।

महत्त्व

भक्ति और प्रतिबद्धता: यह त्योहार वैवाहिक भक्ति और पत्नी के प्यार और दृढ़ संकल्प की शक्ति का उत्सव है।
समुदाय और एकजुटता: यह समुदाय की भावना को भी बढ़ावा देता है क्योंकि महिलाएं अनुष्ठान करने, कहानियाँ साझा करने
और अपनी आध्यात्मिक और पारिवारिक भूमिकाओं में एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए एक साथ आती हैं।
वट सावित्री व्रत हिंदू परंपरा में विश्वास, प्रेम और समर्पण की एक गहन अभिव्यक्ति है, जो सावित्री द्वारा सन्निहित शाश्वत गुणों का सम्मान करता है।

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