pind, daan, ganga-4594748.jpg

पिण्ड-दान का अधिकारी कौन | Who has right to perform pind-dan | Vikram-Baital

Who has right to perform pind-dan पिण्ड-दान का अधिकारी कौन, कहानी बताती है कि बेटे का असली पिता कौन है और उसे पिंडदान किसको देना चाहिए

वक्रोलक नामक नगर में सूर्यप्रभ नाम का राजा राज करता था। उसके कोई सन्तान न थी।

उसी समय में एक दूसरी नगरी में धनपाल नाम का एक साहूकार रहता था।

उसकी स्त्री का नाम हिरण्यवती था और उसके धनवती नाम की एक पुत्री थी।

जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल मर गया और उसके नाते-रिश्तेदारों ने उसका धन ले लिया।

हिरण्यवती अपनी लड़की को लेकर रात के समय नगर छोड़कर चल दी। रास्ते में उसे एक चोर सूली पर लटकता हुआ मिला। वह मरा नहीं था।

उसने हिरण्यवती को देखकर अपना परिचय दिया और कहा, “मैं तुम्हें एक हज़ार अशर्फियाँ दूँगा। तुम अपनी लड़की का ब्याह मेरे साथ कर दो।”


चोर बोला, “मेरे कोई पुत्र नहीं है और निपूते की परलोक में सदगति नहीं होती। अगर मेरी आज्ञा से और किसी से भी इसके पुत्र पैदा हो जायेगा तो मुझे सदगति मिल जायेगी।”

For reading more interesting stories click here


हिरण्यवती ने लोभ के वश होकर उसकी बात मान ली और धनवती का ब्याह उसके साथ कर दिया।

चोर बोला, “इस बड़ के पेड़ के नीचे अशर्फियाँ गड़ी हैं, सो ले लेना और मेरे प्राण निकलने पर मेरा क्रिया-कर्म करके तुम अपनी बेटी के साथ अपने नगर में चली जाना।”


इतना कहकर चोर मर गया। हिरण्यवती ने ज़मीन खोदकर अशर्फियाँ निकालीं, चोर का क्रिया-कर्म किया और अपने नगर में लौट आयी।


उसी नगर में वसुदत्त नाम का एक गुरु था, जिसके मनस्वामी नाम का शिष्य था। वह शिष्य एक वेश्या से प्रेम करता था।

वेश्या उससे पाँच सौ अशर्फियाँ माँगती थी। वह कहाँ से लाकर देता! संयोग से धनवती ने मनस्वामी को देखा और वह उसे चाहने लगी।

उसने अपनी दासी को उसके पास भेजा। मनस्वामी ने कहा कि मुझे पाँच सौ अशर्फियाँ मिल जायें तो मैं एक रात धनवती के साथ रह सकता हूँ।


हिरण्यवती राजी हो गयी। उसने मनस्वामी को पाँच सौ अशर्फियाँ दे दीं। बाद में धनवती के एक पुत्र उत्पन्न हुआ।

For reading more interesting stories click here

उसी रात शिवाजी ने सपने में उन्हें दर्शन देकर कहा, “तुम इस बालक को हजार अशर्फियों के साथ राजा के महल के दरवाज़े पर रख आओ।”

For reading more interesting stories click here


माँ-बेटी ने ऐसा ही किया। उधर शिवाजी ने राजा को सपने में दर्शन देकर कहा,
“तुम्हारे द्वार पर किसी ने धन के साथ लड़का रख दिया है, उसे ग्रहण करो।”


राजा ने अपने नौकरों को भेजकर बालक और अशर्फियों को मँगा लिया। बालक का नाम उसने चन्द्रप्रभ रखा।

जब वह लड़का बड़ा हुआ तो उसे गद्दी सौंपकर राजा काशी चला गया और कुछ दिन बाद मर गया।

पिता के ऋण से उऋण होने के लिए चन्द्रप्रभ तीर्थ करने निकला। जब वह घूमते हुए गयाकूप पहुँचा
और पिण्डदान किया तो उसमें से तीन हाथ एक साथ निकले।

चन्द्रप्रभ ने चकित होकर ब्राह्मणों से पूछा कि किसको पिण्ड-दान दूँ?

उन्होंने कहा, “लोहे की कीलवाला चोर का हाथ है, पवित्रीवाला ब्राह्मण का है और अंगूठीवाला राजा का।
आप तय करो कि किसको देना है?”

इतना कहकर बेताल बोला, “राजन्, तुम बताओ कि उसे किसको पिण्ड-दान देना चाहिए?”

राजा ने कहा, “चोर को, क्योंकि उसी का वह पुत्र था। मनस्वामी उसका पिता इसलिए नहीं हो सकता
कि वह तो एक रात के लिए पैसे से ख़रीदा हुआ था।

इसलिए राजा भी उसका पिता नहीं हो सकता, क्योंकि उसे बालक को पालने के लिए धन मिल गया था।
इसलिए चोर ही पिण्ड-दान का अधिकारी है।”

इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा।

रास्ते में फिर उसने एक कहानी सुनाई।

Scroll to Top